तुरई की फसल | तुरई के किट | Pest of Ridgeguard
अभी वेजिटेबल के लिए अच्छा सीजन है| इसका मतलब की मौसम अच्छा है जो सब्जियों की वृद्धि और विकास के लिए बहोत अच्छा है| इसी कारन अभी देश के बहोत सारे जगह पर अलग अलग सब्जियों की खेती कम बड़े मात्रा में की जाती है|
अभी तुरई की खेती कही जगह बड़े मात्रा में की जाती है| फसल में नुकसान किट और रोगों के कारन होता है| तुरई की फसल में अलग अलग कीटों का प्रकोप दिखाई देता है जिसके कारन फसल का नुकसान होता है और फार्मर को नुकसान उठाना पड़ता है|
किसानों को फसल में आनेवाले कीटों के बारे में जानकारी होनी जरुरी है| तभी किसान एकीकृत किट प्रबंधन तरीके से कीटों का अच्छा प्रबंधन करके अच्छी उपज किसान प्राप्त कर सकते है| और किट प्रबंधन में आनेवाला खर्चा भी कम कर सकते है| तो आज हम जानते है की तुरई की फसल में कौनसी कीटों का प्रकोप होता है|
तुरई की फसल में आनेवाले किट:-
लीफ माइनर (लिरियोमायज़ा ट्राइफोली):-
यह एक बहुभक्षी किट है जो बेलवाली सब्जियों में ही ज्यादातर पाई जाती है| इस किट की एडल्ट एक मक्खी जैसी होती है जो पत्तियों के ऊपरी सतह पर अंडे देती है अण्डों से निकली मग्गोट्स पत्तियों में बिच का हरा भाग खाती रहती है जिसके कारन पत्तियों पर सफ़ेद रेषे दिखाई देती है| लार्वा पूरी बढ़ने के बाद पत्तियों पर या फिर मिटटी में किट कोशिका अवस्था में चली जाती है| किट के ज्यादा प्रकोप होने पर पत्तियां सुखकर निचे गिरती है| जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है और किसान को नुकसान उठाना पड़ता है|
रेड पम्पकिन बीटल:-
किट के बीटल लाल भूरे रंग का होता है| बीटल मादा बीटल अकेले या पौधों के आधार के पास 8-9 के समूह में लगभग 150 से 300 अंडे दे सकती है। इनका भी जीवनचक्र एडल्ट, अंडे, इल्ली और कोशिका ऐसे चार अवस्था से पूरा होता है| किट का पूरा जीवनचक्र 26 से 27 दिन का होता है। प्रति वर्ष लगभग 5 से 8 पीढ़ियाँ होती हैं।
बीटल अवस्था(प्रौढ़) अधिक विनाशकारी होते हैं। वे पत्तियों पर छेद करते हैं और फूलों को भी खाते हैं। बीटल पत्तियों, फूलों और बीजपत्रों में छेद करके उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। जल्दी बोई गई खीरे की फसलें गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं, जिससे दोबारा बुआई की जरूरत पड़ी है। पत्तों पर अनगिनत छेद दिखाई देते है| अंडे से बाहर निकलने के बाद ग्रब मिट्टी की सतह के नीचे पौधों की जड़ों को खाते हैं।
ग्रब बेलों में छेद करते हैं और मिट्टी के संपर्क में आने वाले फलों को खाते हैं।
थ्रिप्स:-
थ्रिप्स ये जो रस चूसक किट आती है वो बहोत सारे फसल में पाया जाता है| इस किट के निम्फ और एडल्ट दोनों फसल में पत्तियों के पीछे रहकर पत्तियों से रस चूसते है| वयस्क हल्के पीले रंग के होते हैं। पंखों के जोड़ से एक काली रेखा शरीर के पीछे की ओर दिखाई देती है। पतले झालरदार पंख पीले होते हैं। फ्रिंज आगे के किनारे पर पीछे की अपेक्षा छोटी होती है। शरीर की लंबाई 0.8 -1.0 मिमी है। जिनके कारन पत्तियां पिली, तेज की कमी पत्तियों में दिखाई देती है| और पौधों की वृद्धि रुक जाती है| इन सभी लक्षणों के साथ फसल में विषाणुजनित रोग फ़ैलाने का कारन भी बनती है|
सफ़ेद मक्खियाँ:-
अंडे पीले-सफ़ेद रंग के होते हैं जो पत्तियों की निचली सतह पर अकेले दिए जाते हैं। निम्फ पीले और भूरे, उप अण्डाकार और स्केल जैसे होते हैं। ये पत्तियों की निचली सतह पर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। सफ़ेद मक्खी एक रोगवाहक है, जो पत्ती मोड़ने वाले विषाणु को प्रसारित करती है। इसका मुख भाग छेदने वाला और चूसने वाला होता है| निम्फ और वयस्क दोनों पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे नई पत्तियों में विकृति आ जाती है। सफ़ेद मक्खियाँ शहद का स्राव भी करती हैं, जिससे कालिखयुक्त फफूंद उत्पन्न होती है।
फल मक्खी (बैट्रोसेरा कुकुर्बिटे):-
फलों की सतह पर छेद किया हुवा (अंडे देने के निशान) दिखाई देता है जिसके कारन फलों से रस का निकलता हुआ दिखाई देता है। फलों पर छेद किया हुआ घाव दिखाई देता है बाद में फल सड़ जाते हैं| मादा मेज़बान फल के छिलके के नीचे छेद करके अंडे देती है। अंडे से निकले मग्गेट्स फलों के गूदे को खाता है। पूर्ण विकसित लार्वा मिट्टी में प्यूपा निर्माण के लिए फलों से निकलते हैं। वयस्क एक मक्खी जैसा पारदर्शी पंखों वाला सोने जैसे रंग की अलग छठा के साथ दिखाई देता है|
इन कीटों के साथ फसल में गर्मी के दिनों में एफिड और रेड माइट्स का भी प्रकोप फसल में दिखाई देता है| अफिड्स भी अन्य रस चूसक कीटों की तरह पत्तियों के निचली सतह पर रहकर पत्तियों से रस चूसता है| रेड माइट्स बहोत छोटे होते है और पत्तियों के निचे अच्छे से देखने पर दिखाई पड़ते है| रेड माइट्स युवा पत्तियों के पास ज्यादा दिखाई देते है| इनका प्रकोप ज्यादा होने पर माइट्स जाली बनाते है| इन किट का प्रकोप होने के कारन पत्तियां सफ़ेद पड़ने लगती है और पत्तियों की साथ ही पौधे की वृध्दि रुक जाती है|
तुरई के फसल पर इन कीटों का प्रकोप दिखाई देता है| मौसम और मिटटी के नुसार किट का प्रकोप अलग अलग दिखाई पड़ सकता है| तो तुरई की फसल लेनेवाले किसान इन कीटों को ध्यान में रखकर किट प्रबंधन करें| तो अच्छी तरह से किट का प्रबंधन होते हुए फसल से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है|
स्त्रोत-ppqs.gov.in ब्लॉग & TNAU ब्लॉग
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